मिट्टी की उर्वरता के लिये लाभदायक – हरी खाद

  • Mosaic India
  • Crop Nutrition
  • मिट्टी की उर्वरता के लिये लाभदायक – हरी खाद
मिट्टी की उर्वरता के लिये लाभदायक हरी खाद

मिट्टी की उर्वरता के लिये लाभदायक – हरी खाद

किसान भाइयों, मिट्टी की उत्पादकता को बढ़ाने, जैविक पदार्थों तथा पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए हरी खाद बहुत महत्वपूर्ण होती है। हरी खाद को सहायक फसल भी कह्ते है। प्राय: इस तरह की फसल को इसकी प्रारंभिक अवस्था – हरी फसल को ही जोतकर सड़ा देने की प्रक्रिया को हरी खाद कहते है। हरी खाद से भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है और भूमि की रक्षा होती है।

हरी खाद के लाभ –

  • हरी खाद से केवल नत्रजन व कार्बनिक पदार्थ ही नहीं बल्कि इससे मिट्टी में कई अन्य आवश्यक पोषक तत्त्व भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते है।
  • क्षारीय व लवणीय मिट्टील के सुधार में सहायक होती है।
  • कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में भी बढ़ोत्तरी देखने को मिलती है।
  • हरी खाद के प्रयोग से मिट्टीर भुरभुरी, अच्छा वायु संचार, जलधरण क्षमता में वृद्धि देखने को मिलती है।
  • हरी खाद से मृदा क्षरण में भी कमी होती है।
  • हरी खाद के प्रयोग से मिट्टी् में सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ती है तथा मृदा की उर्वरा शक्ति एवं उत्पादन क्षमता भी बढ़ती है।

हरी खाद के लिये उपयुक्त फसलें –

हरी खाद के लिये उपयुक्त फसल सनई, ढ़ैंचा, उर्द, मूंग, ग्वार, लोबियाव कुल्थी आदि है। अधिक वर्षा वाले स्थानों में जहाँ जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो सनई का उपयोग कर सकते हैं, ढैंचा को सूखे की दशा वाले स्थानों में तथा समस्याग्रस्त भूमि में जैसे क्षारीय दशा में उपयोग कर सकते है। ग्वार को कम वर्षा वाले स्थानों में रेतीली, कम उपजाऊ भूमि में लगायें। लोबिया को अच्छे जल निकास वाली मृदा में तथा मूंग, उड़द को खरीफ या ग्रीष्म काल में जहाँ जल भराव न होता हो लगाना उपयुक्त रहता है।

हरी खाद की फसल को बुआई के दिन से 40 से 60 दिन की अवस्था में पाटा लगाकर मिट्टी पलटने वाले हल से 15 से 20 से.मी. की गहराई पर पलट देना चाहिए। समय से पहले पलट देने से पर्याप्त कार्बनिक पदार्थ प्राप्त नहीं होते तथा देर से पलटने से रेशा अधिक होने के कारण सड़ने-गलने में अधिक समय लगता है। अतः उचित समय पर पलटना लाभदायक होता है। अधिक वर्षा तथा अधिक तापक्रम की दशा में सड़ने-गलने की प्रक्रिया शीघ्र-प्रारंभ हो जाती है। ढैंचा या सनई की फसल को हरी खाद के रूप में पलटने के बाद पानी भरकर धान की रोपाई की जा सकती है।

हरी खाद प्रयोग की समस्याएं –

प्रमुख रुप से फसल उत्पादन की सघन पद्धति तथा विभिन्न संसाधनों में प्रतिस्पर्धा का होना प्रमुख रुप से देखा जाता है। परन्तु हम ग्रीष्म ऋतु की कम आबादी वाली फसलों को लगाकर उसके बाद खेत में जुताई कर सकते है। इसके अतिरिक्त मेढ़ पर नाइट्रोजन स्थिरीकरण के लिए उपयुक्त पौधों को लगाकर उनकी पत्तियों एवं टहनियों को खेत में मिलाकर हरी खाद के रूप में प्रयोग कर सकते है।

Share this post
Author: Vishal UpadhyaySenior Regional Agronomist at Mosaic India, (M.B.A. in Agribusiness, M.Sc. in Agriculture).

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *