
मृदा परीक्षण की आवश्यकता एवं लाभ
भारत एक कृषि प्रधान देश है, और कृषि के लिए मिट्टी की आवश्यकता होती है। मिट्टी के बिना खेती का होना लगभग असंभव है। हमारी इस मिट्टी की स्थिति निरंतर गिरती जा रही है और विभिन्न प्रकार की समस्याएं बढ़ती जा रही है, ज़्यादातर क्षेत्रों में किसान भाई भी अपनी मिट्टी की स्थिति से अवगत नहीं है। इन सभी समस्याओं को देखते हुए और मिट्टी की स्थिति सुधारने के लिए, मिट्टी का परीक्षण करवाना बहुत महत्वपूर्ण है।
मृदा परीक्षण या भूमि की जाँच मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों की मात्रा, पीएच (pH) मान और मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवों की संख्या निर्धारित करने के लिए मिट्टी के नमूने का एक रासायनिक परीक्षण है।
मृदा परीक्षण करवाकर हम अपनी मिट्टी की वर्तमान स्थिति को जानकर उसकी स्थिति सुधारने के लिए कदम उठा सकते है, और सही अनुपात में आवश्यक पोषक तत्वों का भी चयन कर सकते है। साथ ही साथ अपनी मिट्टी के अनुसार हम सही फसल चक्र का चयन कर ज्यादा लाभ भी प्राप्त कर सकते है।
मृदा परीक्षण के लिये सैंपल लेना –
- एक एकड़ क्षेत्र में लगभग 8-10 स्थानों से ‘V’ आकार के 6 इंच गहरे गड्ढे बनाये।
- एक खेत के सभी स्थानों से प्राप्त मिट्टी को एक साथ अच्छे से मिलाकर ½ से 1 किलोग्राम का एक नमूना बनाये।
- नमूने की मिट्टी से कंकड़, घास इत्यादि अलग करे।
- सूखे हुए नमूने को कपड़े की थैली में भरकर कृषक का नाम, पता, खसरा संख्या, मोबाइल नंबर, आधार संख्या, उगाई जाने वाली फसलों आदि का ब्यौरा दें।
- नमूना निकटतम प्रयोगशाला को प्रेषित करे।
मृदा परीक्षण के लाभ –
- मिट्टी की जाँच रिपोर्ट नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, द्वितीयक पोषक तत्व और सूक्ष्म पोषक तत्वों की उचित आपूर्ति के लिए सिफ़ारिश करने में मदद करती है।
- मिट्टी की जाँच से पीएच (pH) स्तर का भी पता चलता है।
- मिट्टी की जाँच संतुलित फसल पोषण के प्रबंधन में सहायक है।
- उर्वरकों की सही मात्रा को मिट्टी में मिलाने से मिट्टी की विषाक्तता को नियंत्रित किया जा सकता है तथा मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को भी बढ़ा सकते है।
- मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों के अनुसार फसलों का चयन करने से अधिक पैदावार प्राप्त होती है।
- मिट्टी की जाँच रिपोर्ट के माध्यम से वैज्ञानिक रूप से फसलों के अनुसार पोषक तत्वों का प्रबंधन किया जा सकता है।
मृदा का नमूना लेते समय सावधानियां –
- मृदा का नमूना इस तरह से लेना चाहिए जिससे वह पूरे खेत की मृदा का प्रतिनिधित्व करे। किसी एक खेत में फसल के विकास में, मिट्टी के रंग, ढलान, या जमीन धसी हो या अलग-अलग फसल लगानी हो तो प्रत्येक भाग से अलग-अलग नमूने लेने चाहिए।
- एक नमूना ज्यादा से ज्यादा 2 हैक्टेयर से लिया जा सकता है।
- मृदा का नमूना खाद के ढेर, पेड़ो, मेंडो, ढलानों व रास्तो के पास से तथा ऐसी जगहों से जो खेत का प्रतिनिधित्व नहीं करती है, वंहा से नहीं लेना चाहिए।
- मृदा के नमूने लेते समय साफ-सफाई का भी ध्यान रखें इसके लिये साफ औज़ारो से नमूना एकत्र करे तथा साफ थैली में डालें। कोई ऐसी थैली काम में ना लाएं जो खाद एवं अन्य रसायनो के लिए प्रयोग में लाई गई हो।
- मृदा का नमूना बुआई से लगभग एक माह पूर्व प्रयोगशाला में भेज दें, जिससे समय पर मृदा की जांच रिपोर्ट मिल जाये एवं उसके अनुसार उर्वरकों एवं मृदा सुधारको का उपयोग किया जा सके।
- जिस खेत मे कंपोस्ट, खाद, चूना, जिप्सम तथा अन्य कोई भूमि सुधारक तत्काल डाला गया हो तो उस खेत से नमूना ना लें।
- मृदा के नमूने के साथ सूचना-पत्र अवश्य डालें जिस पर साफ अक्षरों में नमूना संबधित सूचना एवं किसान का पूरा पता लिखा हो।
- धातु से बने औज़ारो या बर्तनों को काम में नहीं लाएं क्योंकि इनमें लौह, जस्ता व तांबा होता है। जहां तक संभव हो, प्लास्टिक या लकड़ी के औजार काम में लें।
मिट्टी का नमूना कहां भेजें –
मिट्टी का नमूना लेने के बाद उसकी जांच के लिए आप स्थानीय कृषि विभाग से संपर्क कर सकते है। निकटतम कृषि विज्ञान केंद्र या कृषि विश्वविध्यालय के माध्यम से भी आप मिट्टी की जांच करवा सकते है। कुछ प्राइवेट संस्थान भी मृदा परीक्षण करती है अतः निकटतम संस्था से संपर्क कर सकते है।