मक्का फसल में जिंक – स्टार्च निर्माण और सफ़ेद कलिका रोग नियंत्रण का प्रमुख तत्व

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Importance of Zinc in Maize Farming in India

मक्का फसल में जिंक – स्टार्च निर्माण और सफ़ेद कलिका रोग नियंत्रण का प्रमुख तत्व

मक्का (मकई) भारतीय कृषि में एक प्रमुख फसल है, और इसकी उच्च उत्पादकता के लिए पोषक तत्वों का सही प्रबंधन अत्यंत आवश्यक है। जिंक (Zn) एक आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व है, जो मक्का फसल में स्टार्च के निर्माण और सफ़ेद कलिका रोग (White Leaf Spot) से बचाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह पौधों की विकास प्रक्रियाओं, रोग प्रतिरोधक क्षमता, और संपूर्ण गुणवत्ता को बेहतर बनाता है।

जिंक का कार्य मक्का फसल में –

स्टार्च निर्माण और ऊर्जा उत्पादन

      जिंक पौधों में कई एंजाइमों का सह-कारक होता है, जो स्टार्च के निर्माण और टूटने में मदद करते है।

      • एंजाइम सक्रियता: जिंक की उपस्थिति एंजाइम गतिविधि को बढ़ाकर ऊर्जा उत्पादन को सुचारू बनाती है।
      • प्रकाश संश्लेषण: जिंक क्लोरोफिल के निर्माण में मदद करता है, जिससे पौधे सूर्य के प्रकाश से ऊर्जा लेकर स्टार्च और कार्बोहाइड्रेट का उत्पादन करते है।
      • प्रोटीन संश्लेषण: जिंक पौधों में प्रोटीन के निर्माण में मदद करता है, जो कोशिकाओं की संरचना और कार्यक्षमता को मजबूत करता है।

      सफ़ेद कलिका रोग नियंत्रण

      सफ़ेद कलिका रोग मक्का फसल की पत्तियों को प्रभावित करता है, जिससे पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्षमता और उत्पादकता कम हो जाती है।

      • रोग प्रतिरोधक क्षमता: जिंक पौधों की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है, जिससे वे इस रोग से बचाव कर सकते है।
      • पत्तियों की संरचना सुधार: जिंक पत्तियों की मोटाई और मजबूती बढ़ाता है, जिससे रोगजनकों का प्रवेश रुकता है।
      • एंटीऑक्सीडेंट गुण: जिंक पौधों को ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस से बचाता है, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

      मक्का फसल में जिंक की कमी के लक्षण –

      जिंक की कमी से मक्का फसल में निम्नलिखित समस्याएं हो सकती है –

      1. पत्तियों का पीला पड़ना: पत्तियों पर पीले धब्बे या रंग हल्का होना जिंक की कमी का सामान्य संकेत है।
      2. स्टार्च निर्माण में कमी: जिंक की अनुपस्थिति से पौधों में स्टार्च उत्पादन कम हो जाता है।
      3. रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी: जिंक की कमी सफ़ेद कलिका रोग के प्रकोप को बढ़ावा देती है।
      4. विकास में रुकावट: पौधों की ऊंचाई और जड़ों की वृद्धि धीमी हो जाती है।

      जिंक की पूर्ति के उपाय –

      1. फोलियर स्प्रे: जिंक युक्त फोलियर स्प्रे, जैसे मोज़ेक मैग्ना जिंक, का छिड़काव मक्का फसल को त्वरित पोषण प्रदान करता है। यह पौधों की पोषण स्थिति को तेजी से सुधारता है और स्टार्च निर्माण में सहायता करता है।
      2. जिंक सल्फेट उर्वरकों का उपयोग: जिंक सल्फेट जैसे उर्वरकों को मिट्टी में मिलाने से फसल को लंबे समय तक जिंक उपलब्ध होता है। यह उपाय मक्का की जड़ प्रणाली को मजबूत बनाता है और उत्पादकता बढ़ाता है।
      3. मिट्टी परीक्षण: नियमित मिट्टी परीक्षण के जरिए जिंक की कमी का पता लगाया जा सकता है। यह किसानों को यह तय करने में मदद करता है कि मिट्टी में किस अनुपात में जिंक युक्त उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए।
      4. सिंचित कृषि प्रबंधन: सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन का संतुलित उपयोग मिट्टी की जिंक उपलब्धता को बढ़ावा देता है।

      निष्कर्ष –

      मक्का फसल में जिंक का योगदान केवल स्टार्च निर्माण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता, ऊर्जा उत्पादन, और संपूर्ण गुणवत्ता में सुधार करता है। जिंक की कमी को समय पर पहचानकर उसके समाधान के लिए उचित उपाय अपनाने से फसल की उत्पादकता और लाभप्रदता में वृद्धि होती है।

      किसानों को सलाह दी जाती है कि वे अपनी मिट्टी का परीक्षण करें और जिंक युक्त उत्पादों जैसे मोज़ेक मैग्ना जिंक या जिंक सल्फेट का प्रयोग करके अपनी मक्का फसल को स्वस्थ और उत्पादक बनाएं।

      “सही पोषण, बेहतर उत्पादन!”

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      Author: Vishal UpadhyayRegional Agronomist at Mosaic India, (M.Sc. in Agriculture).

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