नींबू वर्गीय फसलों में जिंक और बोरॉन का महत्त्व

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Effect of Zinc and Boron on Kinnow Farming

नींबू वर्गीय फसलों में जिंक और बोरॉन का महत्त्व

आज के समय में किन्नू और माल्टा की कम उत्पादकता और खराब फल गुणवत्ता, उत्पादकों के सामने प्रमुख चुनौतियों में से एक है। इन समस्याओं के समाधान के लिए जिंक और बोरॉन का उपयोग बहुत महत्वपूर्ण है। यह तत्व नींबू वर्गीय फसलों की उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

जिंक के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य –

अगर हम मिट्टी एवं पौधों में जिंक की गतिशीलता के बारे में बात करें तो यह मिट्टी एवं पौधों में स्थिर रहता है (Immobile), इसीलिए कमी के लक्षण नयी पत्तियों पर दिखाई देते है। इसलिए मिट्टी में प्रयोग की तुलना में पर्णीय उपचार (Foliar Spray) अधिक प्रभावी होता है।

मिट्टी में जिंक की उपलब्धता को प्रभावित करने वाले कारक –

  • ज्यादा पीएच (>पीएच 7.5) – लवणीय / क्षारीय मिट्टी।
  • बहुत कम या बहुत अधिक आर्गेनिक मैटर।
  • ज्यादा पानी एवं कम तापमान।
  • मिटटी में ज्यादा फॉस्फोरस।

जिंक के प्रभाव एवं लाभ –

  • क्लोरोसिस से बचाव।
  • समय से पहले पत्ती गिरने से रोकता है।
  • स्वस्थ एवं हरे भरे पेड़ों के लिए जरुरी।
  • देर से पड़ने वाले पाले से बचाव।
  • कली के विकास, फूल आने और फल लगने में सहायक।
जिंक की कमी (Source: edis.ifas.ufl.edu)
बोरॉन की कमी (Source: Plants, MDPI)

बोरॉन के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य –

  • बोरॉन नाइट्रोजन और पोटैशियम सहित अन्य पोषक तत्वों के कुशल उपयोग में सहायता करता है।
  • नाइट्रोजन और कार्बोहाइड्रेट को पत्तियों से विकासशील फल तक ले जाने में मदद कर सकता है।
  • बोरॉन कैल्शियम (Ca) के अवशोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और पौधे में कैल्शियम के मूवमेंट को बेहतर करता है।
  • फसल में अधिक कैल्शियम प्रयोग की स्थिति में, कैल्शियम के अधिकतम उपयोग के लिए अतरिक्त बोरॉन की आवश्यकता पड़ सकती है।

मिट्टी में बोरॉन की उपलब्धता को प्रभावित करने वाले कारक –

  • उच्च पीएच (>पीएच 7.5)।
  • कम सीईसी वाली रेतीली मिट्टी – लीचिंग।
  • सूखे के तनाव से बोरॉन की कमी बढ़ जाती है।
  • उच्च प्रकाश की तीव्रता और लंबे दिन की स्थिति भी बोरॉन की कमी को बढ़ाती है।

बोरॉन के प्रभाव एवं लाभ –

  • फल उपज: नींबू वर्गीय पौधे बोरॉन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते है, बोरॉन की कमी होने पर फलों की उपज पर विपरीत प्रभाव देखने को मिलता है।
  • फलों की संख्या और फलों का वजन: प्रति पेड़ फलों की संख्या बढ़ जाती है, फलों के गिरने से बचाव, और साथ ही साथ फलों के वजन में भी बढ़ोत्तरी होती है।
  • रस की मात्रा: बोरॉन की आपूर्ति पकने और परिपक्वता को तेज कर के रस की मात्रा को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है, जिससे फसल की गुणवत्ता एवं बिक्री क्षमता बढ़ जाती है।
  • कुल घुलित ठोस (TDS): बोरॉन मिठास को बढ़ाकर फलों की गुणवत्ता को सीधे प्रभावित करता है।
  • विटामिन सी: बोरॉन फलों में विटामिन सी की मात्रा को भी बढ़ा सकता है।

जिंक और बोरॉन के सही और समय पर उपयोग से नींबू वर्गीय फसलों की उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार संभव है, जिससे किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है।

“खेती में छोटी-छोटी चीजें जुड़कर बड़ा बदलाव ला सकती है। जब संतुलित फसल पोषण की बात आती है तो निश्चित रूप से ऐसा ही होता है।”

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Author: Dr. Chandra Prakash Senior Regional Agronomist at Mosaic India, (Ph.D. Agronomy).

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