आलू के गुणवत्तापूर्ण उत्पादन में जिंक और बोरॉन का महत्व

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आलू के गुणवत्तापूर्ण उत्पादन में जिंक और बोरॉन का महत्व

चावल और गेहूं के बाद आलू मनुष्यों द्वारा उपभोग की जाने वाली दुनिया की तीसरी सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसल है। दुनिया भर में एक अरब से ज़्यादा लोग आलू खाते है, और वैश्विक कुल फसल उत्पादन 300 मिलियन मीट्रिक टन से भी ज़्यादा है। यदि आलू की किस्मों की बात करें तो देशी आलू की 4,000 से ज़्यादा किस्में है।

प्रायः हम आलू को स्टार्च का अच्छा स्रोत मानकर ग्रहण करते है जबकि, स्टार्च के अलावा, आलू में विटामिन, खनिज और फाइबर भी होते है। आलू विटामिन सी से भरपूर होते है, जो एक एंटीऑक्सीडेंट है। आलू शुरुआती समय में जीवन रक्षक खाद्य स्रोत थे क्योंकि विटामिन सी स्कर्वी जैसे रोग से बचाव करता था।

आलू की फसल को आवश्यक प्राथमिक एवं द्वितीयक पोषक तत्वों के साथ-साथ सूक्ष्म पोषक तत्वों की भी आवश्यकता होती है खासकर जिंक एवं बोरॉन की।

जिंक: जिंक, मैंगनीज और मैग्नीशियम जैसा ही होता है, क्योंकि यह एंजाइमेटिक प्रतिक्रियाओं में एक बंधन एजेंट के रूप में कार्य करता है। इस तरह यह प्रोटीन को विकृत होने से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए, जिंक नाइट्रोजन चयापचय (Metabolism) में एक प्रमुख भूमिका निभाता है और कमी वाली फसलों में प्रोटीन का स्तर कम हो जाता है।

बोरॉन: बोरॉन सभी पौधों के पोषक तत्वों में सबसे अधिक परिवर्तनशील है, क्योंकि यह विभिन्न पौधों की प्रजातियों द्वारा कैसे परिवहन और चयापचय किया जाता है – इस वजह से बोरॉन के प्रति प्रतिक्रिया अत्यधिक परिवर्तनशील हो सकती है।

बोरिक एसिड, मुख्य रूप जिसमें पौधे मिट्टी से बोरॉन लेते है, फ्लोएम मोबाइल नहीं है, लेकिन कुछ पौधों की प्रजातियाँ शर्करा के साथ कॉम्प्लेक्स बनाकर इसे फ्लोएम में स्थानांतरित कर सकती है। यह प्रजाति पर निर्भर करता है, क्योंकि यह इस बात से निर्धारित होता है कि पौधे किस तरह की शर्करा का संश्लेषण करते है। इसका मतलब यह है कि बोरॉन जिस तरह से काम करता है वह फसल विशेष पर निर्भर करता है, जो एक फसल पर काम करता है वह जरूरी नहीं कि दूसरी फसल पर भी काम करे।

आलू उत्पादन में जिंक की भूमिका –

आलू की अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए जिंक का प्रयोग सही समय, सही जगह एवं सही मात्रा में महत्वपूर्ण होता जा रहा है। आलू जिंक के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते है, जिसका आंशिक कारण आलू की बिजाई के समय फॉस्फोरस उर्वरक की उच्च मात्रा का प्रयोग करना भी है। क्योंकि फॉस्फोरस पौधे के जिंक चयापचय (Metabolism) में बाधा डालता है जिससे जिंक की कमी को बढ़ावा मिलता है।

आलू के शुरुआती विकास में फॉस्फोरस और जिंक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है, खासकर जब मिट्टी का तापमान कम होता है।

जिंक क्लोरोफिल उत्पादन, कार्बोहाइड्रेट चयापचय और कोशिका वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, साथ ही साथ पत्ती के आकार को भी प्रभावित करता है। स्टार्च की मात्रा भी जिंक से प्रभावित होती है। जिंक ऑक्सिन निर्माण और कोशिका विभाजन और बढ़ाव के लिए भी आवश्यक है।

जिंक (Zn) की कमी के लिए जिम्मेदार परिस्थितियाँ –

कम कार्बनिक पदार्थ वाली मिट्टी में जिंक का स्तर भी कम ही होता है, और ज़्यादातर आलू रेतीली मिट्टी में उगाए जाते है, जिसमें कम कार्बनिक पदार्थ होते है। कई बार पिछली फ़सलों द्वारा मिट्टी से जिंक का अवशोषण कर लिया जाता है या रेतीली मिट्टी से लाच हो जाती है, जिससे आलू में जिंक सबसे आम सूक्ष्म पोषक तत्व की कमी बन गई है। साथ ही उच्च pH वाली मिट्टी में जिंक पौधों के लिए अनुपलब्ध हो सकती है।

क्योंकि जिंक मिट्टी में गतिशील नहीं होता, इसलिए जड़ों को ही वहां जाना पड़ता है जहां जिंक होती है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि शुरुआती विकास के लिए आलू के पौधों को जिंक उपलब्ध हो, जिंक को कंद के टुकड़ों के पास या फसल के शुरुआती चरण में पत्तियों पर छिड़काव के माध्यम से पौधों तक सीधे पहुँचाना चाहिए।

आलू उत्पादन में बोरॉन की भूमिका –

बोरॉन, कंदों के विकास को कम करने वाली तीव्र वानस्पतिक वृद्धि को रोकने में तथा कंदों में बेहतर कार्बोहाइड्रेट स्थानांतरण के माध्यम से उसके फूलने (Bulking) में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

जर्मनी में लिबनिज़ संस्थान के शोध से पता चलता है कि बोरॉन की स्थिति का पौधों के विकास हार्मोन के सापेक्ष उत्पादन पर एक उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता है। बोरॉन की कमी वाले पौधे ऑक्सिन के उच्च स्तर और साइटोकाइनिन और जिबरेलिन के निम्न स्तर बनाते है, जैसे-जैसे बोरॉन का स्तर बढ़ता है, यह उलट जाता है, ऑक्सिन कम हो जाते है और साइटोकाइनिन बढ़ जाते है और अधिक सक्रिय हो जाते है।

बोरॉन का स्तर हार्मोन संश्लेषण को बदल देता है, साथ ही पौधों की बढ़वार को भी! आलू एक ऐसी फसल है जहाँ उत्पादकों को अच्छी उपज सुनिश्चित करने के लिए कंद के विकास के साथ शीर्ष वृद्धि को संतुलित करना अतिआवश्यक होता है। वनस्पति वृद्धि में मुख्य चालक नाइट्रोजन है, जिससे नाइट्रेट के स्तर में वृद्धि होने पर पौधे ऑक्सिन के उच्च स्तर का उत्पादन करते है – जिससे कंद के विकास की जगह पर तेजी से वनस्पति वृद्धि होती है। किसानों को इस नाइट्रोजन प्रतिक्रिया को सावधानीपूर्वक संतुलित करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि शीर्ष वृद्धि कंद की उपज और गुणवत्ता के साथ समस्याएँ पैदा नहीं करें।

बोरॉन का उपयोग ऑक्सिन संश्लेषण को कम करने और तेजी से वनस्पति विकास की अवधि को धीमा करने के लिए किया जा सकता है। इसके लिए समय और मात्रा सही होनी चाहिए, क्योंकि बोरॉन की कमी और विषाक्तता के बीच एक महीन रेखा होती है। इसका मतलब है कि उत्पाद का चुनाव, समय और स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।

आलू के अच्छे स्वास्थ्य और गुणवत्ता के लिए बोरॉन बहुत ही आवश्यक होता है। कंदों में बोरॉन की कमी होने पर आलू पकाने की गुणवत्ता में कमी आ सकती है। निम्नलिखित कारणों की वजह से आलू की फसल को पर्याप्त बोरॉन की आवश्यकता होती है –

  • कैल्शियम के सही पोषण एवं पूरे पौधे में कैल्शियम की आवाजाही के लिए
  • कोशिका प्रकार की एकरूपता
  • विटामिन सी की सांद्रता में वृद्धि, जो पोषण को बढ़ाती है
  • उपज और समग्र गुणवत्ता के लिए

बोरॉन कोशिका भित्ति में कैल्शियम को स्थिर करता है और कैल्शियम के साथ मिलकर कार्य करता है, जिससे पौधों की रोग, कीट और पर्यावरणीय तनावों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता में सुधार होता है। क्योंकि बोरॉन कैल्शियम अवशोषण को प्रभावित करता है, इसलिए संतुलित पोषण सुनिश्चित करने के लिए बोरॉन की प्रयाप्त आपूर्ति महत्वपूर्ण होती है।

बोरॉन की कमी –

आलू में बोरॉन की कमी के लक्षण शायद ही कभी टहनियों पर देखे जाते है, हालांकि छोटे इंटरनोड और मुड़ी हुई पत्तियों के साथ कम वृद्धि से पता चलता है की बोरॉन की कमी है।

भूरे रंग के नेक्रोटिक धब्बे के रूप में कंदों में लक्षण अधिक आसानी से देखे जा सकते है। “आंतरिक रस्ट स्पॉट” के रूप में जानी जाने वाली स्थिति बोरॉन उर्वरकों के प्रयोग के लिए जरुरी मानी जाती है, लेकिन यह अभी तक साबित नहीं हुआ है कि यह बोरॉन की कमी के कारण है या केवल बोरॉन के साथ अप्रत्यक्ष संबंध है।

कई बार आलू में बोरॉन की कमी पौधे में आपूर्ति की तुलना में नाइट्रोजन की अधिकता द्वारा प्रेरित तेजी से विकास से अधिक जुड़ी हुई होती है। पौधे को जितना अधिक नाइट्रोजन मिलता है, वह उतनी ही तेजी से बढ़ता है और उसमें बोरॉन की कमी उतनी ही अधिक होती है। इसका मतलब यह है कि बोरॉन के अच्छे स्तर वाली मिट्टी में भी आपको तेजी से विकास की अवधि के दौरान पत्तियों में बोरॉन की कमी हो सकती है।

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Author: Dr. Chandra Prakash Senior Regional Agronomist at Mosaic India, (Ph.D. Agronomy).

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