
धान की फसल में प्रमुख पोषक तत्वों की भूमिका एवं उनका महत्व
धान भारत एवं विश्व भर में एक मुख्य खाद्य फसल के रूप में जानी जाती है, जिसकी खेती विविध कृषि-जलवायु क्षेत्रों में की जाती है। भारत दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा धान उत्पादक और सबसे बड़ा निर्यातक है। धान एक खरीफ फसल है जो अधिक वर्षा वाली गर्म, आर्द्र परिस्थितियों में पनपती है, लेकिन इसे सूखे क्षेत्रों में सिंचाई के साथ भी उगाया जा सकता है।
धान को इष्टतम विकास और उपज के लिए संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन की आवश्यकता होती है। धान की फसल के लिए आवश्यक प्राथमिक पोषक तत्वों में नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P) और पोटैशियम (K) शामिल है। सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता तो कम मात्रा में होती है, लेकिन वे पौधों के पोषण में प्रमुख तत्वों के समान महत्वपूर्ण होते है।
पौधों के लिए प्राथमिक पोषक तत्वों जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं पोटैशियम होते है, कैल्शियम, मैग्नीशियम और सल्फर द्वितीयक पोषक तत्व श्रेणी में आते है तथा आयरन, मैंगनीज, कॉपर, जिंक, बोरॉन, मोलिब्डेनम और क्लोरीन सूक्ष्म पोषक तत्वों के रूप में जाने जाते है। प्राथमिक और द्वितीयक पोषक तत्व प्रमुख तत्व के रूप में जाने जाते है। तत्वों का वर्गीकरण उनकी मात्रा के आधार पर होता है न कि उनके महत्व पर।
प्रभावी प्रबंधन में जैविक और अजैविक दोनों प्रकार के उर्वरकों का उपयोग, सही समय पर, सही दर से, सही स्थान पर और सही स्रोत से पोषक तत्वों का प्रयोग शामिल है।

प्राथमिक पोषक तत्वों की भूमिका –
नाइट्रोजन
- नाइट्रोजन पत्तियों को स्वस्थ हरा रंग प्रदान करके पौधों के वानस्पतिक विकास को प्रोत्साहित करता है।
- धान की फसल में नाइट्रोजन की सबसे ज्यादा आवश्यकता 2 अवस्थाओं पर होती है, पहला शुरुआती वानस्पतिक अवस्था एवं दूसरा फूल बनने से पहले की अवस्था।
- धान का पौधा अपने नाइट्रोजन के लिए मुख्य रूप से अवायवीय (Anaerobic) परिस्थितियों में कार्बनिक पदार्थों के अपघटन पर निर्भर करता है और विकास के प्रारंभिक चरणों में अमोनिया के रूप में नाइट्रोजन लेता है जो जलमग्न मिट्टी में नाइट्रोजन का स्थिर रूप होता है।
फास्फोरस
- फास्फोरस की आवश्यकता विशेष रूप से शुरुआती विकास अवस्था में महत्वपूर्ण है।
- फास्फोरस बेहतर जड़ एवं तना विकास व जल्दी फूल आने को बढ़ावा देता है।
- जब धान के पौधों की जड़ प्रणाली पूरी तरह से विकसित नहीं हुई होती है और मिट्टी में फास्फोरस की आपूर्ति अपर्याप्त होती है, तो उस समय फास्फोरस उर्वरक की आवश्यकता होती है।
- यह पौधे में अतिरिक्त नाइट्रोजन के हानिकारक प्रभावों को भी कम करता है।
पोटैशियम
- पोटैशियम पौधों की बीमारियों, कीटों के हमलों, ठंड और अन्य प्रतिकूल परिस्थितियों का प्रतिरोध करने की क्षमता को बढ़ाता है।
- फोटोसिंथेट के उत्पादन एवं सिंक तक पहुंचाने में मदद करता है।
- अन्य पोषक तत्वों के उचित अवशोषण में भी मदद करता है।
- पौधे की शाखाओं और दानों के आकार एवं वजन को भी प्रभावित करता है।
द्वितीयक पोषक तत्वों की भूमिका –
कैल्शियम
- मजबूत कोशिका-भित्ति के लिए कैल्शियम की अहम् भूमिका होती है।
- यह मुक्त नाइट्रोजन के स्थिरीकरण या नाइट्रोजन के कार्बनिक रूपों से नाइट्रेट्स के निर्माण से संबंधित मिट्टी के जीवाणुओं की गतिविधि को भी बढ़ावा देता है।
- इसके अलावा, यह एक अच्छी जड़ प्रणाली के विकास के लिए आवश्यक होता है।
मैग्नीशियम
- मैग्नीशियम क्लोरोफिल का एक आवश्यक घटक होता है।
- प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया एवं पौधों को हराभरा रखने के लिए अतिआवश्यक होता है।
- आमतौर पर पौधों को इसकी अपेक्षाकृत कम मात्रा की आवश्यकता होती है। इसलिए मिट्टी में इसकी कमी पोटैशियम की तुलना में बाद में महसूस होती है।
सल्फर
- यह क्लोरोफिल उत्पादन, प्रोटीन संश्लेषण और पौधों के कार्य और संरचना के लिए जरूरी होता है।
- सल्फर पुआल और पौधों के डंठलों का एक महत्वपूर्ण घटक होता है।
पोषक तत्वों की कमी और विषाक्तता –
नाइट्रोजन की कमी के लक्षण
- पौधों की वृद्धि रुक जाती है और वे पीले पड़ जाते है।
- पूरे पौधे की पुरानी पत्तियाँ पीले-हरे रंग की हो जाती है।
- पुरानी पत्तियाँ कभी-कभी सभी पत्तियाँ हल्के हरे रंग की हो जाती है।
- कमी के लक्षण सबसे पहले पत्तियों के सिरे पर दिखाई देते है और मध्य शिरा के साथ-साथ तब तक बढ़ते है जब तक कि पूरी पत्ती मर न जाए।
- पत्तियाँ संकरी, छोटी, सीधी और नींबू-पीले-हरे रंग की हो जाती है।
नाइट्रोजन विषाक्तता के लक्षण
- पौधों का गहरे हरे रंग का हो जाना।
- प्रचुर मात्रा में पत्ते एवं सीमित जड़ प्रणाली।
- फूल और बीज बनने में देरी हो सकती है।
फास्फोरस की कमी के लक्षण
- पौधे बौने हो जाते है और उनमें कलियाँ कम निकलती है।
- पत्तियाँ संकरी, छोटी, बहुत सीधी और गहरे हरे रंग की होती है।
- पुरानी पत्तियाँ भूरे-लाल रंग की हो जाती है और पत्तियों में बैंगनी रंग विकसित हो जाता है।
- तने पतले होते है, कम एवं कमजोर कलियाँ / शाखाएँ।
- जड़ों की खराब वृद्धि।
पोटैशियम की कमी के लक्षण
- पीले रंग के साथ गहरे हरे पौधे।
- भूरे रंग के पत्तों के किनारे और पुरानी पत्तियों के सिरे पर भूरे रंग के नेक्रोटिक धब्बे।
- पुष्पगुच्छों पर जंग लगे भूरे रंग के धब्बे और कमजोर एवं हल्के दानें।
- कमज़ोर तने एवं पौधों का गिर जाना।
कैल्शियम की कमी के लक्षण
- सबसे छोटी पत्तियों के सिरे का सफ़ेद होना एवं सफ़ेद हो कर मुड़ जाना।
- पत्तियों के पार्श्व किनारों पर परिगलन।
- पुरानी पत्तियाँ भूरी हो जाना और मर जाना।
- शीर्ष कलिका की बढ़वार का रुकना एवं सूख जाना।
मैग्नीशियम की कमी के लक्षण
- पत्ती का हरितहीन होना एवं सिरे का सफेद हो जाना।
- पुराने पत्तों पर नारंगी-पीले रंग का अंतरशिरा हरितहीनता और बाद में नये पत्तों पर पीलापन।
- हरितहीनता के कारण पुरानी पत्तियों में पीलापन और अंत में परिगलन होता है, गंभीर मामलों में पत्तियां लहरदार और झुकी हुई होती है।
- बालियों की संख्या और दानों की गुणवत्ता में कमी।
सल्फर की कमी के लक्षण
- पूरा पौधा पीला या हल्का हरा हो जाना।
- नई पत्तियाँ हरितहीन या हल्के हरे रंग की हो जाना, जिसके सिरे परिगलित हो जाना।
- पत्तियाँ हल्के पीले रंग की हो जाना।
- उपज पर प्रभाव तब अधिक स्पष्ट होता है जब वनस्पति वृद्धि के दौरान सल्फर की कमी होती है।