खेती में महत्वपूर्ण फसल चक्र

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Crop Rotation Principles and Advantages

खेती में महत्वपूर्ण फसल चक्र

फसल चक्र कृषि के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, अंग्रेजी में इसे क्रॉप रोटेशन भी कहते है। किसी निश्चित भूमि में निश्चित समय वाली फसलों को लगातार अदल-बदलकर बोना ही फसल चक्र कहलाता है। किसी क्षेत्र की भूमि, जलवायु एवं अन्य वातावरणीय कारकों के आधार पर भिन्न-भिन्न फसल चक्र अपनाये जाते है। एक अच्छे फसल चक्र को अपनाकर एक किसान अपनी भूमि से ज्यादा लाभ कमा सकता है।

फसल चक्र का महत्व –

आज के समय में अगर खेती के उत्पादन एवं उत्पादकता में होने वाली कमी को देखें, तो इसमें कहीं ना कहीं फसल चक्र सिद्धांत का नहीं होना भी एक महत्वपूर्ण कारण है, क्योंकि फसल चक्र सिद्धांत नहीं अपनाने से उपजाऊ भूमि का क्षरण, जीवांश की मात्रा में कमी, भूमि से लाभदायक सूक्ष्मजीवों की कमी, हानिकारक कीट-पतंगों में व्रद्धि, खरपतवार की समस्या में बढ़ोतरी, जल धारण क्षमता में कमी, भूमि के भौतिक रासायनिक गुणों में परिवर्तन, क्षारीयता में बढ़ोतरी, भूमिगत जल का प्रदूषण, कीटनाशकों का अधिक प्रयोग एवं उनके प्रति प्रतिरोधक क्षमता का विकास देखा गया है।

आज एक निश्चित मात्रा में उत्पादन प्राप्त करने के लिए पहले की अपेक्षा बहुत अधिक मात्रा में खाद का प्रयोग करना पड़ रहा है, क्योंकि भूमि में उर्वरक उपयोग क्षमता का मूल्यह्रास बढ़ गया है। इन सब से बचने के लिए हमें फसल चक्र के सिद्धांतों को दृष्टिगत रखते हुए फसल चक्र में दलहनी फसलों को जोड़ना बहुत ज़रूरी हो गया है, क्योंकि दलहनी फसलों से एक अच्छा और टिकाऊ फसल उत्पादन विकसित होता है।

फसल चक्र के प्रमुख सिद्धांत –

  • उथली जड़ वाली फसलों के बाद गहरी जड़ वाली फसलों को उगाना चाहिये।
  • अधिक जल की आवश्यकता वाली फसलों के बाद कम जल की आवश्यकता वाली फसलों को उगाना चाहिये।
  • अधिक खाद चाहने वाली फसलों के बाद कम खाद की आवश्यकता वाली फसलों को उगाना चाहिये।
  • फसलों का समावेश स्थानीय बाजार की मांग के अनुरूप होना चाहिये।
  • फलीदार फसलों के बाद बिना फलीदार फसलों को उगाना चाहिये।
  • मृदा क्षरण से प्रभावित क्षेत्रों में फसल चक्र में आच्छादित फसलों का समावेश होना चाहिये।

फसल चक्र के प्रमुख लाभ –

  • भूमि की संरचना में सुधार होता है।
  • किसी खेत के क्षेत्रफल से एक निश्चित समय में होने वाले उत्पादन में वृद्धि होती है।
  • कृषि के लिये उपलब्ध संसाधनों का क्षमताशाली उपयोग होता रहता है।
  • फसल चक्र अपनाने से मृदा उत्पादकता बढ़ती है तथा कार्बन-नाइट्रोजन के अनुपात में वृद्धि होती है।
  • मृदा के पीएच तथा क्षारीयता में सुधार होता है।
  • बीमारियों व कीटों से बचाव हो पाता है।
  • उर्वरक-अवशेषों का पूर्ण प्रयोग हो पाता है।
  • विभिन्न फसलों का कार्यक्रम निश्चित हो जाने से उनके लिये आवश्यक बीज का तथा खरपतवारनाशी आदि का उचित समय के अनुसार प्रयोग किया जा सकता है।
  • फसल चक्र में गहरी तथा कम गहरी (उथली) जड़ वाली फसलों के सम्मिलित होने के कारण भूमि की ऊपरी सतह तथा नीचे की सतह से पोषक तत्वों का फसल द्वारा उचित एवं तेजी से अवशोषण होता है।
  • एक फसल चक्र को अपनाने से मृदा क्षरण में कमी आती है क्योंकि फसल चक्र में आच्छादन फसलों को सम्मिलित किया जाता है।
  • कृषक को वर्ष भर कार्य करने का अवसर मिलता है।
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Author: Vishal UpadhyayRegional Agronomist at Mosaic India, (M.Sc. in Agriculture).

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